सफलता की कहानी

भाकृअनुप – भारतीय गन्नार अनुसंधान संस्था न (ICAR-IISR) द्वारा किए गए हस्तअक्षेप से हुआ उत्तुर प्रदेश में अभी तक का रिकॉर्ड चीनी उत्पाCदन
भाकृअनुप – भारतीय गन्‍ना अनुसंधान संस्‍थान ( ICAR - IISR), लखनऊ, उत्‍तर प्रदेश, देश में और विशेषकर अर्ध-उष्‍णकटिबंधीय भारत के लिए गन्‍ना और चीनी सेक्‍टर में सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। उत्‍तर प्रदेश राज्‍य में स्थित होने के कारण संस्‍थान द्वारा राज्‍य के गन्‍ना विभाग एवं चीनी मिलों के साथ गहन सहयोग करते हुए गन्‍ना विकास के लक्षित कार्यक्रमों को लागू किया गया है। भाकृअनुप – भारतीय गन्‍ना अनुसंधान संस्‍थान ( ICAR - IISR), लखनऊ, उत्‍तर प्रदेश द्वारा किए गए इन लक्षित प्रयासों का प्रतिफल उत्‍तर प्रदेश राज्‍य को मिला जब यहां वर्ष 2016-17 के क्रशिंग सीजन में 8.72  m t का रिकॉर्ड चीनी उत्‍पादन हासिल किया गया और राज्‍य, देश के चीनी उत्‍पादक राज्‍यों के बीच प्रथम स्‍थान पर पहुंचा। सभी हितधारकों यथा भारतीय गन्‍ना अनुसंधान संस्‍थान (सार्वजनिक अनुसंधान संस्‍थान), राज्‍य गन्‍ना विभाग (सार्वजनिक विकास एजेन्‍सी), चीनी मिल (निजी) और गन्‍ना उत्‍पादक (किसान) को शामि करते हुए भागीदारी मोड में गन्‍ना विकास गतिविधियों को लागू करने के भाकृअनुप – भारतीय गन्‍ना अनुसंधान संस्‍थान ( ICAR - IISR), लखनऊ, उत्‍तर प्रदेश के टिकाऊ प्रयासों ने उत्‍तर प्रदेश के चीनी सेक्‍टर में अतुलनीय सफलता हासिल करने में उल्‍लेखनीय योगदान दिया है। भागीदारी मोड के तहत, भाकृअनुप – भारतीय गन्‍ना अनुसंधान संस्‍थान ( ICAR - IISR), लखनऊ द्वारा प्रौद्योगिकीय हस्‍तेक्षप किए गए,  विकास गतिविधियों के लिए चीनी मिलों को वित्‍तीय परिव्‍यय का सहयोग प्रदान किया गया, गतिविधियों को कार्यान्वित करने के लिए राज्‍य गन्‍ना विभाग द्वारा कार्यपरक सम्‍पर्क उपलब्‍ध कराया गया और किसानों द्वारा चीनी मिलों के कमाण्‍ड क्षेत्रों में सहयोगात्‍मक कार्यक्रम को लागू करने में अपनी भूमि, मजदूरी और निवेश संसाधन मुहैय्या कराए गए।  
प्रारंभ किए गए हस्‍तक्षेप
वर्षों से उत्‍तर प्रदेश राज्‍य में चीनी उद्योग की पहचान गन्‍ना उपज में ठहराव और कम चीनी वसूली वाली बनी हुई थी। व्‍यापक पैमाने पर प्रौद्योगिकीय हस्‍तक्षेपों को अपनाकर इस स्थिति को बदलने की एक चुनौती विद्यमान थी। भाकृअनुप – भारतीय गन्‍ना अनुसंधान संस्‍थान ( ICAR - IISR), लखनऊ ने इस चुनौती को स्‍वीकार किया और रणनीतिपरक योजना के साथ कार्य करना प्रारंभ किया जिसमें शामिल था :- प्रौद्योगिकीय हस्‍तक्षेपों की पहचान; हितधारकों में जागरूकता का संचार; सक्रिय सहयोग के साथ वैज्ञानिक मानवश्रम को तैनात करना; और उत्‍तर प्रदेश सरकार के गन्‍ना विकास विभाग और चीनी मिलों से लॉजीस्टिक सहयोग ।
पुरानी गन्‍ना किस्‍मों के स्‍थान पर नई जारी की गईं किस्‍मों का प्रतिस्‍थापन करने में स्‍वस्‍थ बीज सामग्री की अनुपलब्‍धता एक प्रमुख बाधा थी।  इसका समाधान किसानों के खेतों में बीज गन्‍ना उत्‍पादन में उद्यमशीलता विकास कार्यक्रम को लागू करके किया गया। प्रतिवर्ष नई गन्‍ना किस्‍मों का 2000 टन प्रजनक बीज उत्‍पन्‍न किया गया और नर्सरियों में इसका गुणनीकरण किया गया तथा राज्‍य सरकार के गन्‍ना विकास विभाग के माध्‍यम से यह सुनिश्चित किया गया कि यह वास्‍तविक रूप में किसानों के खेतों तक पहुंचे। इस दिशा में, काफी हद तक नई गन्‍ना किस्‍मों की स्‍वस्‍थ बीज सामग्री की कमी को दूर किया गया। वर्ष 2012 से पहले, अखिल भारतीय समन्वित गन्‍ना अनुसंधान परियोजना के तहत परीक्षित किस्‍मों और तदुपरान्‍त केन्‍द्रीय किस्‍म निर्मुक्ति समिति (CVRC)  द्वारा जारी किस्‍मों की सिफारिश करने के प्रति राज्‍य गन्‍ना विकास विभाग अनिच्‍छुक बना हुआ था। भाकृअनुप – भारतीय गन्‍ना अनुसंधान संस्‍थान ( ICAR - IISR), लखनऊ, उत्‍तर प्रदेश ने इस मुद्दे को राज्‍य सरकार के समक्ष उठाया और वर्ष 2012 से केन्‍द्रीय किस्‍म निर्मुक्ति समिति द्वारा जारी की गईं किस्‍मों को भी राज्‍य में खेती के लिए संस्‍तुत किस्‍मों की सूची में शामिल किया गया। इससे उत्‍तर प्रदेश राज्‍य में जल्‍दी पककर तैयार होने वाली उच्‍च शर्करा किस्‍म विशेषकर  Co 0238 और  CoLk 94184 को व्‍यापक पैमाने पर अपनाने का मार्ग प्रशस्‍त हुआ। इन किस्‍मों की शुरूआत करने से उत्‍तर प्रदेश के गन्‍ना और चीन उत्‍पादन परिदृश्‍य में अभूतपूर्व बदलाव आया। रोपण में एक अन्‍य सफलता हासिल की गई जब लगभग 2.0 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्रफल में ट्रेंच विधि को अपनाया गया जिससे गन्‍ना की उपज में 15 – 20 टन/हे. तक की वृद्धि हुई। फसलोत्‍तर होने वाला नुकसान प्रमुख चिन्‍ता का विषय बना रहा क्‍योंकि इसके कारण चीनी वसूली में अवरोध होता है। इस समस्‍या का समाधान कटाई के बाद गन्‍ना पर सोडियम मेटासिलिकेट (0.5 प्रतिशत)+ बेन्‍जलकोनियम क्‍लोराइड (0.2 प्रतिशत) घोल के मिश्रण का छिड़काव करके किया गया। इससे 0.3 से 0.5 इकाई तक चीनी वसूली करने में मदद मिली। विभिन्‍न प्रकार के गन्‍ना प्‍लान्‍टर्स को व्‍यापक पैमाने पर अपनाने से किसानों को मजदूरों की कमी के बावजूद समय से रोपाई कार्य पूरा करने में मदद मिली और साथ ही इससे 8 – 10 प्रतिशत तक उपज वृद्धि हासिल करने में भी मदद मिली। इसी प्रकार, रैटून प्रोमोटर मशीन की शुरूआत करने से रैटून गन्‍ना की उपज में 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई। गन्‍ना फसल के साथ दालों, सब्जियों, तिलहन और अनाज का अंतर फसलचक्र अपनाने से गन्‍ना उत्‍पादकों को प्रति हेक्‍टेयर रूपये 50000 से रूपये 200000 की अतिरिक्‍त आमदनी अर्जित करने का अवसर मिला। भाकृअनुप – भारतीय गन्‍ना अनुसंधान संस्‍थान    ( ICAR - IISR), लखनऊ, उत्‍तर प्रदेश द्वारा प्रतिवर्ष किसानों, गन्‍ना विकास कार्मिकों और चीनी मिल के अधिकारियों के लिए 30 – 40 दक्षता उन्‍नयन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए। प्रशिक्षुओं को भाकृअनुप – भारतीय गन्‍ना अनुसंधान संस्‍थान ( ICAR - IISR) के पथ प्रदर्शकों के रूप में तैयार किया गया जिससे इनके अनुवर्ती विस्‍तार में और किसानों द्वारा प्रौद्योगिकियों का अंगीकरण करने में मदद मिली।
राज्‍य गन्‍ना विभाग और चीनी मिलों के साथ नियमित रूप से इन्‍टरफेस बैठकें आयोजित की गईं ताकि व्‍यापक क्षेत्र में किसानों के खेतों में भाकृअनुप – भारतीय गन्‍ना अनुसंधान संस्‍थान ( ICAR - IISR) हस्‍तक्षेपों को प्रारंभ करने के लिए ऑपरेशनल योजना का निर्णय किया जा सके। इन योजनाओं को सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी से लागू किया गया।

 

भागीदारी प्रयासों के मधुर परिणाम अब उत्‍तर प्रदेश राज्‍य में स्‍पष्‍ट रूप से देखे जा रहे हैं जैसा कि राज्‍य गन्‍ना और चीनी उपज में बढ़ोतरी के साथ आगे बढ़ रहा है और इसने बड़े अन्‍तराल से पिछले सभी रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया है।   

 

(स्रोत : भाकृअनुप – भारतीय गन्‍ना अनुसंधान संस्‍थान ( ICAR - IISR), लखनऊ, उत्‍तर प्रदेश)